Saturday, March 28, 2009

Indian Carnivals


People chanting line after line.....atmosphere in that 20 X 20 room was kind of stuffy and in some way suffocating......but still I was not feeling uncomfortable......everyone had only one thing in mind.....same expression on their face.......!!!!!

Looking at all this......my mind was forced to make comparisons as it always does when it comes to describing my country and my people. I was standing in the Temple of one of the 36 crore Gods and Goddesses ...Rama Pir as the bhakts call him.

मौका था चेटी चंद का| हालाँकि यह पहली बार नहीं था की में ऐसा कोई समारोह देख रहा था पर इस बार मेरे मन् में बात आगई तो लिख रहा हूँ। अज लग रहा था की में भी सिन्धी कम्युनिटी को बिलोंग करता हूँ। :)) मैंने देखा है वहां पश्चिम में आपको किसी बड़ी भीड़ को एक साथ देखना है तो दो ही जगह देख सकते हैं किस रॉक कंसर्ट में या फ़िर किसी कार्निवल में। कार्निवल में अलग अलग तरह की झांकियां निकली जाती है....एक परेड होती है जिसमे लोग बाद चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। बस ऐसा ही कुछ हो है चेटी चाँद के मेले में। हिन्दुओं के काफी सरे देवी देवताओं की वेश भूषा में लोगो को बैठा दिया जाता है किसी रथ या फ़िर उस जैसे ही चीज़ पर और जुलुस निकला जाता है। किसी कार्निवल की तरह ही लोग इसमे हिस्सा लेते हैं।
फर्क सिर्फ़ इतना होता है की वहां इस चीज़ का मकसद अपना मनोरंजन होता है और यहाँ हमारी भारत में इस चीज़ का मकसद हमारी आस्था से जुड़ा हुआ होता है। वहां पर धन और वैभव का प्रदर्शन होता है। और यहाँ भक्ति और विश्वास का |

जहाँ तक आस्था का प्रश्न उठता है भारत में यह अनंत मात्रा मिलती है। आस्था हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। अगर आस्था को भारतियों से अलग कर दिया जाए शायद हमारा अस्तित्व नहीं रहेगा | आस्था हम भारतियों को एक साथ जोड़े रखती है | धर्म और आस्था एक ही सिक्के के दो पहलु हैं | किसी मन्दिर में खड़े श्रधालुओं को देखेंगे तो पाएंगे की कितनी एकता है इनमे | श्रद्धा और भक्ति ही है जो हर इंसान में एक जैसे होती है |

जब में उस मन्दिर में यह सब सोच रहा था तो उस समय आरती चल रही थी भगवन रामा पीर की | हर कोई मग्न होकर आरती गा रहा था | सभी लोग शान्ति और धैर्य से भगवान की भक्ति कर रहे थे | सभी के चेहरों पर शान्ति के भाव थे | मैंने सोचा की यह आस्था भी कितनी अची चीज़ होती है | यह हमें अनुशासन सिखाती , हमें विश्वास और शान्ति देती है | तभी तो गहरे से गहरा दर्द भी भगवान् के मन्दिर में आकार दूर आजायेगा इसका हौसला मिलता है | कोई नौकरी मांगने अता है तो कोई इम्तिहान में अच्छे नम्बर | किसी को घर की चिंता सता रही होती है किसी को कोई बीमारी | हम सब किसी न किसी मांग को लेकर ही भगवान् के पास जाते हैं |

आरती ख़तम होते ही हम लड़को को बाहर भक्तों के लिए प्रसाद जो बनाया गया था उसे बांटना शुरू करना था | उस समय ऐसा लगा की सब में जैसे एक अलग ही फुर्ती और जोश आ गया हो!!!! सबके हाथ मशीन की तरह चलने लग गए | हर एक को प्रसाद देने की जैसे कोई रेस ही शुरू हो गई थी | फ़िर प्रसाद देते समय "जय बाबा री " का उच्चारण | ऐसा लग रहा था की बस सारी की सारी भक्ति और नम्रता यहीं आकार बस गई है इन सब में और यही सब जोश को और दुगना कर रहा था | झांकियां आना शुरू हुई तो माहौल जैसे उबल उठा | " जय बाबा री " " जय बाबा री " से तो पुरी सड़क गूँज उठी | हाथों की गति और भी बढ़ गई |

आस्था ......एक अलग ही मुकाम तक ले जाती है हमारी क्षमताओं को | परन्तु इसका एक और चेहरा भी देखा आज मैंने | वोह चेहरा जिसे विज्ञानं मानने को तैयार नही है और हम भूलने को तैयार नहीं हैं | मम्मी ने मुझे फटाफट कम के बीच में से निकाला और कहा जल्दी अन्दर मन्दिर में चल बाबा आए हुए हैं , तू भी आशीर्वाद लेले | मैं अन्दर गया तो देखा एक महिला रामदेव ( राम पीर ) जी के आगे खड़ी है और सब उनके आगे हाथ जोड़े खड़े हैं | महिला के चेहरे पर बेहोशी जैसे हाव भाव थे | तब मुझे समझ मैं आ गया की माजरा क्या है | बस यहीं .......यहीं आकर मेरा आस्था से टकराव शुरू हो जाता है | यहीं मुझे आस्था पर एक सवाल खड़ा करना पड़ जाता है की क्या है यह????? कोई ऐसा कैसे कर सकता है ( ऐसा कैसे हो सकता है सवाल पूछने का कोई मतलब नही है) क्या सच मैं भगवान् को हमारे शरीर मैं आने की आवश्यकता है ? और अगर वह किसी इंसान के शरीर मैं आते भी हैं तो क्या फायदा होगा इस से ? लेकिन यह सब सवाल मेरे ही दिमाग में घूम रहे थे | सब को उनमें भगवान् दिख रहे थे जो उनके दुखों को दूर करने के लिए ही वहां आए हैं |

कुछ देर के लिए तो लगा की में यह सब नहीं कर सकता!!!!! फ़िर एक हाथ ने मुझे पीछे से आगे की ओर धकेला ......मेरी मम्मी थीं वोह | बेटा आगे जा और मांग ले जो माँगना है | बोल के मुझे अच्छे नुम्बरों से पास करदो | मैं आगे बढ़ा और झुक गया उनके पैर चूने के लिए | इसीलिए नहीं की मुझे विश्वास हो गया था उन पर पर इस लिए की मुझे अपनी माँ की आस्था पर विश्वास था | मैं उनकी आस्था के आदर के लिए झुका | माँ का dइल तो बच्चे की भलाई ही चाहेगा ना |

मैं झुक तो गया पर यह सवाल मेरे मन् मैं हमेशा से थे | कुछ चीज़ें हैं जिनका मतलब आप शायद नहीं समझ सकते| और अगर समझ जाते हैं तो वोह चीज़ें आस्था से परे हो जाती हैं |


ps : Its been really nice writing in hindi but I guess it will take some time in making my hindi look like a disciplined writer. Comments are invited both on the post and the ability of writing in Hindi!!!! :)) :))

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